ॐ
!! कृण्वन्तो विश्वार्यम !!
आर्य समाज के नियम
01 -- सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं , उन सब का आदिमूल परमेश्वर है !
02 -- ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप , निराकार , सर्वशक्तिमान , न्यायकारी , दयालु , अजन्मा , अनन्त , निर्विकार , अनादि , अनुपम , सर्वाधार , सर्वेश्वर , सर्वव्यापक , सर्वान्तर्यामी , अजर , अमर , अभय , नित्य , पवित्र , और सृष्टिकर्ता है , उसी की उपासना करनी योग्य है !
03 -- वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है ! वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है !
04 -- सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये !
05 -- सब काम धर्मानुसार , अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चहिये !
06 -- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है , अर्थात शारीरिक , आत्मिक और सामजिक उन्नति करना !
07 -- सब से प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिये !
08 -- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये !
09 प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये किन्तु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये !
10 -- सब मनुष्यों को सामजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतत्र रहे !
-- परम श्रध्य महर्षि दयानन्द सरस्वती .
!! कृण्वन्तो विश्वार्यम !!
आर्य समाज के नियम
01 -- सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं , उन सब का आदिमूल परमेश्वर है !
02 -- ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप , निराकार , सर्वशक्तिमान , न्यायकारी , दयालु , अजन्मा , अनन्त , निर्विकार , अनादि , अनुपम , सर्वाधार , सर्वेश्वर , सर्वव्यापक , सर्वान्तर्यामी , अजर , अमर , अभय , नित्य , पवित्र , और सृष्टिकर्ता है , उसी की उपासना करनी योग्य है !
03 -- वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है ! वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है !
04 -- सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये !
05 -- सब काम धर्मानुसार , अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चहिये !
06 -- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है , अर्थात शारीरिक , आत्मिक और सामजिक उन्नति करना !
07 -- सब से प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिये !
08 -- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये !
09 प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये किन्तु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये !
10 -- सब मनुष्यों को सामजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतत्र रहे !
-- परम श्रध्य महर्षि दयानन्द सरस्वती .
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